Kalsarp Yoga

Kalsarp Yoga

काल सर�?प योग : कारण �?वं निवारण:-

जब जन�?म क�?ंडली में राह�? और केत�? के मध�?य समस�?त ग�?रह आ जाते हे�? तो कालसर�?प योग कहलाता है |

          हमारे नक�?षत�?र मंडल में सात ग�?रहों का प�?रत�?यक�?ष रूप से भौतिक अस�?तित�?व है,लेकिन राह�?-केत�? का कोई भौतिक अस�?तित�?व नहीं है| यही कारण है कि इन�?हें छाया ग�?रह कहा जाता है|

          प�?राचीन ग�?रंथों के अन�?सार राह�? के पिता विप�?चिति दानव थे और माता दानवराज हिरण�?यकशिप�? की प�?त�?री सिन�?हिका थी|सम�?ंदर मंथन के उपरांत प�?राप�?त अमृत का छल पूर�?वक पान करने के कारण भगवान विष�?ण�? ने स�?दर�?शन चक�?र से राह�? की सिर काट दिया था, लेकिन चू�?कि उसने अमृत पान कर लिया था इसलि�? वह अमर हो गया | विवशता वश भगवान ने उस दानव के कटे सिर को राह�? �?वं धड़ को केत�? के रूप में नव ग�?रहों में स�?थान प�?रदान किया|

          यदि फलित ज�?योतिष�? के अन�?सार देखा जा�? तो नेसर�?गिक रूप से राह�? और केत�?,स�?र�?य और चंद�?रमा के शत�?र�? हें|

ब�?ध,श�?क�?र और शनि राह�? के मित�?र हें,जबकि ग�?र�? सम तथा मंगल शत�?र�? हें| इसी परकार केत�? के मित�?र हें- श�?क�?र और मंगल | ब�?ध और ग�?र�? सम है और शनि इसके शत�?र�? हें|कन�?या राह�? की उच राशि है और मिथ�?न में २० अंश का परमोच�?च तथा धन�? में २० अंश का परम नीच होता है| केत�? की स�?वराशि मीन है और यह धन�? में ६ अंश का परमोच�?च और मिथ�?न में ६ अंश का परमनीच होता है| अन�?य ग�?रहों के समान राह�?-केत�? की सातवीं दृष�?टि नहीं होती,केवल पा�?चवीं और नवीं दृष�?टि होती है|

               राह�?-केत�? की गति श�?द�?र,दिशा नेत�?रित�?य, पन�?च�?धात�? ,तमोग�?णी,कशाय-रस, क�?रमशः काला �?वं धब�?बेदार मिश�?रित रंग माना गया है|राह�? का रत�?न गोमेद और केत�? का रत�?न लहस�?निया है|

               राह�? का परभाव शनि देवता के समान है, और इनका आघात �?वं प�?रहार अचूक �?वं महाभ�?यनक होता है|                 राह�? ग�?रह घमंड,राजनीति,तस�?करी,षड�?यंत�?र,शिकार,शराब,अपहरण,क�?तर�?क,दादागिरी,देश निकाला,सर�?प,हवा,मेथ�?न,म�?लेच�?छ,परनिन�?दा,कपट,गांजा भांग,अफ़ीम,सिगरेट,विद�?रोह,द�?र�?ग�?न,मजदूर,सफाई, पैथोलॉजिस�?ट,गोबर,शमशान,कर�?मचारी,उल�?टी,विषजन�?य रोग आदि का प�?रतिनिधित�?व करता है| जबकि केत�? ग�?रह जादू-टोना,इंद�?रजाल,चमत�?कारी कर�?य,गाड़ा ह�?आ धन,अचानक भग�?योद�?य,वेद-शास�?त�?रों का अधिनायक,चर�?म रोग,ग�?प�?त बल,वर�?णशंकार,भूख से उत�?पन�?न कष�?ट,दादी,नाना,सोतेला पिता,दत�?तक प�?त�?र का प�?रतिनिधित�?व करता है|

                इन दोनो छाया-ग�?रहों का अपना परभाव नहीं होता बल�?कि ये जिस ग�?रह के साथ होते हैं उसी के स�?वभाव के अन�?सार फल प�?रदान करते हैं|अकेले होने पर जिस ग�?रह की राशि में होते हैं,उसी ग�?रह का फल प�?रदान करते हैं|

 

कालसर�?प योग का प�?रभाव :-

 

               काल सर�?प योग से प�?रभावित जातक को अनेक प�?रकार की म�?सीबतें, कष�?ट,अपमान,�?ेलने पड़ते हैं| वास�?तविकता यह है की �?से लोग जीवन तो जी रहे हैं, लेकिन अपने लि�? नहीं बल�?कि केवल दूसरों के लि�?| �?से लोगों को हमेशा शारीरिक कष�?ट लगा रहता है| पढ़ाई में र�?कावट,पैसे की बर�?बादी,विश�?वासघात और ग़लत फहमी आदि होना इसकी पहचान मानी जाती है|इस योग के कारण अन�?य खूब अच�?छे अच�?छे योग भी अपना पूरण फल परदान नहीं कर पाते| इस योग से प�?रभावित जातक सदैव परेशान ही रहता है, उसने जो विद�?या प�?राप�?त की है, उसका सम�?चित उपयोग नहीं हो पता है| वह ग़लत फहमी का शिकार रहता है, उसके पैसे की बर�?बादी होती है और यहा�? तक भी होता है की उसके पास पैसे का अंबार लग जाता है, लेकिन कभी कभी वह �?क र�?पये के लि�? भी मोहताज हो जाता है| उसे घर से बाहर रहना पड़ता है,मानसिक अशांति से जू�?ना पड़ता है, उसे धन प�?राप�?ति नहीं होती,संतान की प�?राप�?ति उसे दूर का ख�?वाब लगती है और उसका ग�?रहस�?थ जीवन भी कलह य�?क�?त हो जाता है|

 

– इस योग से प�?रभावित जातक को निरंतर ब�?रे सपने आते हैं|अकाल मृत�?य�? का डर, अथवा क�?छ अश�?भ होने की आशंका मन में समाई रहती है|�?सा जातक पूरा मन लगाकर कार�?य करता है परंत�? उसका फल उसे प�?राप�?त नहीं होता|वह जो भी कार�?य करता है,उसका परिणाम उसे प�?राप�?त नहीं होता और यदि होता भी है तो बह�?त देर से होता है| उसे जो पद-प�?रतिष�?ठा मिलनी चाहि�? वह उसे नहीं मिलती और उसका श�?रेय दूसरे ले जाते हैं|सामान�?यतः �?से जातकों को मिलने वाले परिणाम निमाणवत हो सकते हैं:-

– भाई-बंध�? रिश�?तेदार आदि धोखा देते हैं| भाइयों का स�?ख नहीं मिलता|

– पत�?नी को बार-बार गर�?भ गिरने की समस�?या आती है|

– �?सा जातक आजीवन संघर�?षरत रहता है|उसका भाग�?य साथ नहीं देता|

– दैहिक �?वं मानसिक कष�?ट भोगने पड़ते हैं,स�?वास�?थ�?य साथ नहीं देता|

– कार�?य व�?यवसाय में दीवाला निकल जाता है अथवा भारी क�?षति उठानी पड़ती है|

– �?से जातकों की पैतृक संपत�?ति नष�?ट हो जाती है अथवा उसे �?सी संपत�?ति से वंचित कर दिया जाता है|

– घर में अकाल मृत�?य�? होती रहती है|

– संतान कष�?ट होता है या फिर संतान का विवाह उचित समय पर नहीं होता है|

– अदालतों या थानों के चक�?कर लगाने पड़ते हैं|

– ग�?रह कलेश अथवा घर में कलह होती रहती है|

– पत�?नी या पति अन�?कूल नहीं मिलता|

– नौकरी अथवा व�?यवसाय में बार-बार असफलता हाथ लगती है|

– मन अशांत रहता है और अग�?यात भय बना रहता है|

– संचित धन-संपदा का अचानक समाप�?त हो जाना|

– संतान स�?ख से असंत�?ष�?टि,उनकी शिक�?षा में बाधा आना अथवा संतान का जिद�?दी �?वं अनियंत�?रित होना|

– जल,नदी,तालाब आदि को देखकर भय लगना|

– स�?वयं के साथ द�?र�?घटना�?�? घटित होना|

– वायवी शक�?तियों,शत�?र�?ओं द�?वारा कि�? गये अभिचार कर�?मों से पीड़ित होना|

 

कालसर�?प योग क�?या है:-

        पृथ�?वी की दो गतिया�? होती हैं- दैनिक गति,जिसे परिभर�?मण �?वं वार�?षिक गति, जिसे परिक�?रमण कहा जाता है|पृथ�?वी का सूर�?य की ओर घूमने का मार�?ग तथा चंद�?र का पृथ�?वी के चारों ओर घूमने का मार�?ग अलग अलग है|जहा�? ये �?क दूसरे को क�?रॉस करते हैं,उसी छाया को राह�? व केत�? कहा जाता है|राह�? व केत�? की अपनी कोई राशि नहीं होती|राह�? का जन�?म नक�?षत�?र भारणी और केत�? का आशलेषा कहा गया है|भारणी का देवता काल व आशलेषा का देवता सर�?प है|इन�?ही काल व सर�?प के मिलने से ‘कालसर�?प योग’ नामक योग उत�?पन�?न होता है|सर�?प का म�?ख राह�? तथा प�?ंछ केत�? हैं|

         क�?ंडली में समस�?त ग�?रह �?क भाव में आ सकते हैं लेकिन राह�? व केत�? कभी �?क भाव में नहीं आ सकते|वे सदैव �?क दूसरे से सातवे भाव अर�?थात १८० अंश पर ही रहते हैं|यही कारण है कि सर�?प के सिर वाले भाग को राह�? व धड़ वाले भाग को केत�? की सन�?ग�?या दी जाती है|

        राह�? नागलोक का प�?रतिनिधित�?व करता है|जातक की मृत�?य�? होने के उपरांत यदि उसकी वासना परिवार में ही अटकी रहती है तो वह नाग योनि में ही रहता है|वासनाओं के कारण जब उसका प�?नः जन�?म होगा तो उसकी क�?ंडली में कालसर�?प योग होगा|इसके अतिरिक�?त ज�?योतिषीय ग�?रंथों में अनेक प�?रकार के शापों का वर�?णन आता है,जिनमें- पूर�?वजन�?म कृत पितृ शाप,ग�?र�?शाप,पत�?निशाप,प�?रेतशाप,सार�?प शाप आदि प�?रम�?ख हैं|जो जातक सर�?प शाप से ग�?रसित होता है,उसकी क�?ंडली में कालसर�?प योग होता है|

        सामान�?यतः करीब ५७६ प�?रकार के कालसर�?प योग बनते हैं,लेकिन यदि शनि के संबंध बनाकर प�?ष�?टि करें तो हज़ारों प�?रकार के कालसर�?प योग बनते हैं|म�?ख�?यतः यह योग दो प�?रकार से बनता है|राह�? के म�?ख की ओर से समस�?त ग�?रह आ�?�? तो सम�?म�?ख कालसर�?प योग और राह�? के दाईं ओर से समस�?त ग�?रह आ�?�? तो उसे विपरीत काल सर�?प योग कहा जाता है|इन�?हें उदित �?वं अन�?दित भी कहा जाता है|उदित कालसर�?प योग म�?ख की ओर से बनता है,जो बह�?त कष�?टप�?रद होता है क�?यूंकी राह�? सदैव वक�?री होता है|इसकी अपेक�?षा अन�?दित कालसर�?प योग कम कष�?ट देने वाला होता है|

 

जब कोई ग�?रह राह�? केत�? के साथ हो और राह�? से कम अंशों पर हो तो वह कालसर�?प योग कष�?टदायक होता है,लेकिन यदि राह�? से अधिक अंशों पर स�?थित ग�?रह साथ हो तो वह कालसर�?प भंग योग की श�?रेणी में आकर कम कष�?टदायी हो जाता है|

      कालसर�?प योग को अश�?भ योग माना जाता है लेकिन �?सा नहीं है|कभी कभी �?सा योग जातक को ब�?लंदियों पर भी पह�?�?चा देता है|प. जवाहर लाल नेहरू,सम�?राट अकबर,राजीव गा�?धी,सचिन तेंद�?लकर आदि इसके उदाहरण हैं|परंत�? यह योग कितना अश�?भ होगा, इसकी गणना जातक की क�?ंडली के गहन अध�?ययन से ही संभव है|

             वास�?तविकता यह है कि ८० प�?रतिशत व�?यक�?ति कालसर�?प योग से प�?रभावित होते हैं| जिनके भी जन�?मांग में यह योग होता है उन�?हें अनेक प�?रकार के कष�?ट,अपमान,म�?सीबतें सहने पड़ते हैं|�?क इस योग के कारण दूसरे अनेक अच�?छे योग भी अपना फल प�?रदान नहीं कर पाते हैं|